चन्द्रावली हरण / गढ़वाली लोक-गाथा
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द्वारिका मा लै गैन कृष्ण घणी[1] सभा,
कबीर कमाल बैठ्या, नारद मुनि-रिषि।
कछड़ी[2] बैठी गैन कृष्ण का सूरदास
अंतरजामी कृष्ण को अंतरध्यान होइगे!
सुकली[3] कोठड़ियों लगी सुतरी[4] पलंग,
सुतरी पलंग गेलुवा[5] विछोणा।
तख कृष्ण बैठी छई सत्यभामा राणी,
दूध केला, छई राणी रुकमणी।
राणी रुकमणी प्रभो, इना बैन बोलदी-
तुम बतावा बांदो[6], प्रभु मैं बतौलू बैखू[7]।
द्वारिका नारैण कृष्ण पूछण लै गैन-
बतावा रुकमणी बैखू मा बैख
तुम बतावा बैखू, मैं बतौलू बांदू।
हां बैखू मा[8] बैख होलू सांवलो नारैण!
मैंन बतैन बैख प्रभु, तुम बतावा बाँदू।
बांदू मा की बांद इन्दर की परी।
मैं सी रूपवंती सी न भुंच्यान[9] ज्वानी[10],
सबू से रूपवंती मेरी बैण[11] चन्द्रावली।
चन्द्रगढ़ मा रंदी बैण चन्द्रावली
तैंका रूपन सूरज धुमैलो[12],
रूप की बातुली[13] होली बाली चन्द्रावली।
तब समझलू मैं तुम रौलू को रौतूलो,
जब बेवैक[14] लाला मेरी बैणी चन्द्रा।
द्वारिका ठाकुर खरो दीलो आणो[15]।
तब मेरा नारैण कृष्ण पूछा लैगैन-
बतावा रुकमणी तुम खरो मनसूबो,
कनकैक बिवै ल्यौण तेरी बैण चन्द्रा।
तुम बणा भगवान बद्री[16] का फेरवाल[17],
तब जावा नारैण चन्द्रावली गढ़।
अपणी चाडी[18] को कृष्ण ब्रम तिलक पैरी,
कृष्ण तब बणी गेन फग्वाल।
मातमी फेग्वाल छऊँ, टीका पैन्याला चंदन।
सूणी चन्द्रान बोलण लैगे।
जा दू स्वांरा[19] चेली[20], टीको लौ परसाद!
तब जांदी स्वांरा चेली फेग्वाल का पास,
तेरा हात चेली, मैं टीकू नी देन्दू!
टीको-परसाद द्यूलो राणी-बौराण्यों[21],
टीको-परसाद द्यूलो पदों का डोलौ[22]।
स्वांरा चेली जांदी चन्द्रावली का पास,
नी देन्दू फेग्वाल वो टीको चन्दन।
राणी चन्द्रावली तब बोलण लै गैन:
वो फेग्वाल नी छ, वो छ द्वारिका नारैण।
द्वारिका भेना की तेरी जोई[23] राँड ह्वान।
तब मेरा नारैण ऐगे[24] श्रवण[25] द्वारिका!
बतौवा रुकमणी हैकौ मनसूबा,
कनकैक[26] बेवैक[27] ल्यौणे तुमारी वैण चन्द्रावली?
तुम धरा नारैण छोरा[28] को भेष,
चन्द्रावली का सात तुम नौकर होई जावा।
गरीब गता[29] करे कृष्णन, चीरी[30] लत्ता[31]।
तब जांद कृष्ण चन्द्रावली का गढ़।
मैं गरीब छौरा छौं क्वी नौकर धन्याला।
इनू पूछद सुँवार, तू नयो छोरा छई,
तिन[32] तनखा क्या लेण?
हजार बैठण की ल्यूलो, हजार उठण की।
इनू पूँछ सुँवार, तिन काम क्या देण?
पेन्दो[33] बाछलो[34] न पकड़ौं,
रोन्दो बच्चा नी थामौं।
नौकर छोरा नी यो, यो छ द्वारिका को भेना।
द्वारिका भेना, तेरी जोई रांड ह्वान।
तब कृष्ण भगवान निराश ह्वैक,
लुबड्याँदी[35] घौणी[36], तिरछी मोणी[37],
श्रवण द्वारिका लौटीक आई।
हे रुकमणी, मेरी कनी फजीती होई!
कुनकै[38] बेवैक[39] लयौण राणी चन्द्रावली?
दया ऐगे तब राणी रुकमणी,
तुम धरा विष्णु रुकमणी को रूप।
तु जावा नारैण त चन्द्रागढ़,
चन्द्रावली मा बोल्यान[40] तुम रोइक-
तेरो भेना[41] चन्द्रा, स्वर्गवासी ह्वैन!
आज भुली[42] चन्द्रावली तेरी दीदी राँड ह्वैगे।
दणमण[43] आँसू धोल्यान[44] तुम,
तोई छोड़ी भली, कुई आसरो नी मेरो।
अपणी चाड़ी[45] को भगवान धरे रुकमणी को रूप,
स्वाग[46] उतारे, वणी गैन रांड!
पहुँचीने भगवान चन्द्रा का भौन[47]।
छोड़दे पथेणा[48] नेतर[49] रांग जसा बुंद,
आज भुली चन्द्रा, मैं रांड होई गयूं।
तेरो भेना कृष्ण स्वर्गवास ह्वै गैन।
सेवा लगौंदी बैणी तैं तब चन्द्रावली,
लीगे गुप्त कोठड्यों सुतरो[50] पलंग।
गेलम[51] बिछौणा, सुकला भौन।
रातुड़ी[52] समै[53] होय संझा की बेला,
होई गये देवतौं की देवा[54] देन्दी बगत।
मेवा मिष्टान भोजन खलौंदी वा,
सेई गैन तब कृष्ण भगवान।
चन्द्रावली वीं रात नींद नी आई,
देखदी रै वा रुकमणी बैणी।
तबरेक[55] वीं को ढक्याण[56] फरके-
ढबरियाली[57] पीठ देखी वीन कंकरियालो[58] माथो,
जजरियालो[59] गात देखे नौन्याली आतमा।
देवी चन्द्रावली का मन सुभा[60] पड़ीगे।
यात होली आतमा बैख को,
देवी चन्द्रावलीन सर्सूं को रूप धरे।
आफू तब कृष्ण भौंर रूप होइगे।
चन्द्रावली न सर्सू[61] को रूप छोड़े,
पोथला[62] को रूप धरे।
अगाड़ी[63] पोथली भागदे, पिछाड़ी द्वारिका नारैण भौंर[64]!
चन्द्रावली पौछीगे[65] नारैण जमुनी[66] छाल[67],
चन्द्रावली बणी गए पाणी की माछी,
कृष्णन तबारे ही ओद[68] को रूप धरियाले।
हे कृष्ण मच्छी पकड़ी लैगीन छाला।
तब भगवान प्रकट होई गैन,
मोर मुकुट पैरे, गाडे[69] मोहन मुरली।
देवी चन्द्रावली देखदी ही रै गए।
तब जंदेऊ[70] लगौंदी स्या-
अपण भेना कृष्ण।
तब सजे भगवान औंला[71] सरी डोला।
पंचनाम देवता ऐन, देवी पार्वती ऐन,
कुन्ती, द्रोपदी मांगल गांदी!
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