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टुटली मैं फटली मड़इआ देखते भेयामन हे / मगही
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मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
टुटली मैं फटली मड़इआ[1] देखते भेयामन[2] हे।
सेहु[3] पइसी सुतली गउरा देइ, मन पछतावे हे॥1॥
माँगि चाँगि[4] लावल[5] महादेव, धन बित[6] छरिआ[7] हे।
बाघेछाल देल ओछाइ[8] बसहा धान खाइल[9] हे॥2॥
नहाइ धोवाइ महादेव चउका चढ़ि बइठल हे।
अधन[10] देली ढरकाइ[11] बिहँसि गउरा बोलथिन हे॥3॥
सब केर देलहो महादेव, धन बित छड़िया हे।
अपना जगतर[12] भिखारी, पइँचो[13] न मिलत हे।
ऐसन नगरिया के लोग, पइँचो न देहइ[14] हे॥4॥
शब्दार्थ
- ↑ झोपड़ी
- ↑ भयानक
- ↑ उसमें
- ↑ भिक्षाटन करके
- ↑ लाये
- ↑ वित्त, संपत्ति
- ↑ छरिया या छड़िया। भोजपुरी क्षेत्र में इस पंक्ति में छरिया या छड़िया के स्थान पर ‘सोनवा’ शब्द गाया जाता है
- ↑ बिछाना, फैलाना
- ↑ खा गया
- ↑ अदहन, वह पानी, जो चावल पकाने के लिए गरम किया जाता है।
- ↑ गिरा दिया। ढुलका दिया
- ↑ जगत का
- ↑ पार्यव, पेंचा, उधार
- ↑ देता है