भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नै बुलबुले-चमन न गुले-नौदमीदा हूँ / सौदा
Kavita Kosh से
नै[1] बुलबुले-चमन न गुले-नौदमीदा[2] हूँ
मैं मौसमे-बहार में शाख़े-बरीदा[3] हूँ
गिरियाँ न शक्ले-शीशा व ख़ंदा न तर्ज़े-जाम[4]
इस मैकदे के बीच अबस[5] आफ़रीदा[6] हूँ
तू आपसे[7] ज़बाँज़दे-आलम[8] है वरना मैं
इक हर्फ़े-आरज़ू[9] सो ब-लब[10] नारसीदा[11] हूँ
कोई जो पूछता हो ये किस पर है दादख़्वाह[12]
जूँ-गुल हज़ार जा से गरेबाँ-दरीदा हूँ[13]
तेग़े-निगाहे-चश्म[14] का तेरे नहीं हरीफ़[15]
ज़ालिम, मैं क़तर-ए-मिज़ए-ख़ूँचकीदा[16] हूँ
मैं क्या कहूँ कि कौन हूँ 'सौदा', बक़ौल दर्द
जो कुछ कि हूँ सो हूँ, ग़रज़ आफ़त-रसीदा[17] हूँ
शब्दार्थ
- ↑ न तो
- ↑ नया खिला फूल
- ↑ टूटी शाख़
- ↑ न शीशे की तरह से रो रहा हूँ और न जाम की तरह से हँस रहा हूँ
- ↑ व्यर्थ ही
- ↑ लाया गया
- ↑ स्वयं ही
- ↑ दुनिया की ज़बान पर चढ़ा हुआ
- ↑ आरज़ू का शब्द
- ↑ होंटो पर
- ↑ पहुँच से वंचित
- ↑ दाद चाहनेवाला
- ↑ फूल की तरह हज़ार जगह से मेरा गरेबान फटा हुआ है
- ↑ निगाहों की तलवार
- ↑ प्रतिद्वंदी
- ↑ ख़ून रो रही पलकों पर टिका हुआ क़तरा
- ↑ आफ़त में फँसा हुआ