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बरबाद न कर बेकस का चमन... / अमजद हैदराबादी
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बरबाद न कर बेकस का चमन, बेदर्द ख़िज़ाँ से कौन कहे।
ताराज़[1] न कर मेरा खिरमन[2], उस बर्के़-तपाँ[3] से कौन कहें॥
मुझ ख़स्ता जिगर की जान न ले, यह कौन अजल को[4] समझाएं।
कुछ देर ठहर जा ऐ दरिया! दरिया-ए-रवाँ से कौन कहें॥
सीने में बहुत ग़म है पिन्हा और दिल में हज़ारों हैं अरमाँ।
इस क़हरे-मुजस्सिम [5] के आगे, हाल अपना ज़बाँ से कौन कहे॥
हरचंद हमारी हालत पर रहम आता है हर इक को लेकिन--
कौन आपको आफ़त में डालें, उस आफ़ते-जाँ से कौन कहे॥
क़ासिद के बयाँ का ऐ ‘अमजद’ क्योंकर हो असर उनके दिल पर
जिस दर्द से तुम ख़ुद कहते हो, उस तर्ज़ेबयाँ से कौन कहे॥