मुझ निर्धन का धन है एक दिन रविवारे मत आना धीमी दिनचर्या के आस-पास अपनापन दर्पण का एक वचन मुश्किल से मिलता है साँचे का लोह-बदन एक दिन पिघलता है और किसी दिन चाहे आ जाना मत आना, रविवारे मत आना
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कृतिदेव | चाणक्य
शुषा | डेवलिस