भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दयारे-इश्क़ में अपना मुक़ाम पैदा कर / इक़बाल
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:25, 7 जुलाई 2010 का अवतरण
अपने पुत्र के लिए लंदन से भेजा गया उनका पहला ख़त
दयारे-इश्क़ में अपना मुक़ाम पैदा कर
नया ज़माना नए सुब्ह-ओ-शाम पैदा कर
ख़ुदा अगर दिले-फ़ितरत-शनास [1] दे तुझको
सुकूते-लाल-ओ-गुल[2] से कलाम पैदा कर
उठा न शीशा-गराने-फ़िरंग के अहसाँ
सिफ़ाले-हिन्द[3] से मीना-ओ-जाम पैदा कर
मैं शाख़े-ताक़[4] हूँ मेरी ग़ज़ल है मेरा समर[5]
मिरे समर से मय-ए- लालाफ़ाम[6] पैदा कर
मिरा तरीक़[7] अमीरी नहीं फ़क़ीरी है
ख़ुदी न बेच ग़रीबी में नाम पैदा कर