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"पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है / मीना कुमारी" के अवतरणों में अंतर
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पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है | पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है | ||
− | रात | + | रात ख़ैरात की, सदक़े की सहर होती है |
साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब | साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब | ||
दिल ही दुखता है, न अब आस्तीं तर होती है | दिल ही दुखता है, न अब आस्तीं तर होती है | ||
− | जैसे जागी हुई आँखों में, चुभें काँच के | + | जैसे जागी हुई आँखों में, चुभें काँच के ख़्वाब |
रात इस तरह, दीवानों की बसर होती है | रात इस तरह, दीवानों की बसर होती है | ||
− | + | ग़म ही दुश्मन है मेरा ग़म ही को दिल ढूँढता है | |
− | एक लम्हे की | + | एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है |
− | एक मर्कज़ की तलाश, एक भटकती | + | एक मर्कज़ की तलाश, एक भटकती ख़ुशबू |
कभी मंज़िल, कभी तम्हीदे-सफ़र होती है | कभी मंज़िल, कभी तम्हीदे-सफ़र होती है | ||
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बारिशे-संग यहाँ आठ पहर होती है | बारिशे-संग यहाँ आठ पहर होती है | ||
− | काम आते हैं न आ सकते हैं | + | काम आते हैं न आ सकते हैं बे-जाँ अल्फ़ाज़ |
− | + | तर्जमा दर्द की ख़ामोश नज़र होती है | |
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08:50, 7 जनवरी 2009 का अवतरण
पूछते हो तो सुनो, कैसे बसर होती है
रात ख़ैरात की, सदक़े की सहर होती है
साँस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
दिल ही दुखता है, न अब आस्तीं तर होती है
जैसे जागी हुई आँखों में, चुभें काँच के ख़्वाब
रात इस तरह, दीवानों की बसर होती है
ग़म ही दुश्मन है मेरा ग़म ही को दिल ढूँढता है
एक लम्हे की जुदाई भी अगर होती है
एक मर्कज़ की तलाश, एक भटकती ख़ुशबू
कभी मंज़िल, कभी तम्हीदे-सफ़र होती है
दिल से अनमोल नगीने को छुपायें तो कहाँ
बारिशे-संग यहाँ आठ पहर होती है
काम आते हैं न आ सकते हैं बे-जाँ अल्फ़ाज़
तर्जमा दर्द की ख़ामोश नज़र होती है
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