भानु भौंपेलो / भाग 2 / गढ़वाली लोक-गाथा
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अपणा कूड़ा[1] भितर, त्वै जगा नी देऊँ, त्वै जगा नी देऊँ।
मैं मर्द को, मुख नी देखदू,
वैको छैल[2] भी, धोरा[3] नी पड़ण देन्दू।
पर फेर वींन, पैरु से सिर तक न्याले[4],
माल का शेर जना मोछ छा
डवराली डीठ, गजभर की पीठ, कंकर्यालो[5] माथो।
तब अमरावती नौनी, मोहित ह्वै गए-
पकड़ीले छोरा की पाखुड़ी[6], लीगे सुतरी[7] पलंग
हे छोरा तू कुछ, खेल-बोल भी जाणदी?
तब गाड़े वींन, हस्तिदन्त पाँसो,
खेलण लैग्या दुये, वीं डाँडा मरुड़ी।
तब ऊँकी आँख्यों से, मिलीन आँखी,
दिल से दिल, जुड़ी गैन।
तब एक ह्वै गैन वो, जना[8] धरती अगास,
ऊँका पराणू मा, प्रीत समाये।
कख छयो, घास काटणो,
दिन भर छोरा, अमरावती का सात, मौज मा रन्दो।
फूलू सीं हैंसदा छन दुये,
पंच्छियों-सी बोलदा छन।
मोस-सी नाचदा छन, वो बणू-बणू माँज[9]।
तब और छानी वालौंन, चुगली खाई-
ब्याले छोरा, भूत जनो आये,
आज रजा की नौनी दगड़े, खेल-बोल कर्द।
तौन लिखी घणी कागली, भेजे कालूनी कोट,
हे सजू कलूनी, तिन अपणी नौनी दगड़े[10]
यो नौकर भेजे कि जार?
सज कलूनी तब भौत गुस्सा ऐगे,
नौनी अमरावती माँगी होली,
ग्वाड़छोड़ का रजा, गुरू ज्ञानचन्द की।
तब लेखदो राजा तरवारी सवाल, करड़ा बयान-
हे राजा ज्ञानचन्द, छोटी बेटी बाप भौंदी,
ठुली[11] बेटी आप भौंदी।
मेरी बेटी लिजालू त, तुरन्त ली जाई,
पिछाड़ी तू वीं का, भराँस[12] न रई।
गुरू ज्ञानचन्द, गुस्सा ऐगे भौत-
कैको आई होलो, रूठो ऊठो काल?
जैन हमारी यांद[13] रखणी चाये।
राजान हात्योंन का, हलका[14] पैटाया[15],
पैटेले रैदल[16] -सैदल।
कना पैटीन, रण का हत्यार,
पैटी गए गुरू ज्ञानचन्द की फौजी बरात।
कालूनी कोट मा, ग्वीराल[17] सी फूलीगे,
शेर[18] मा जगा नी होंदी, जंगलू डेरा पड्याँ,
लेखी कागूली वीं डाँडा मरोड़ी सजू कलूनींन,
हे बेटी अमरा, घर आई जान।
तेरी होली गरै[19] की शान्ती।
स्वामी, आज जौलू, भोल[20] यखी[21] औलू।
तब जाँदी अमरावती, कलूनी कोट मा,
कलूनी कोट मा, ग्वीराल फूल्यूँ छ
पिता जी का शेर[22] मा, क्या तमाशो होल?
पौंछी गए अमरा, पिता का भौन-
पितान वीं का, ब्यौ की बात नो सुणाई।
राजा बेटी की, नहोणी धुवेणी करौन्द
अनमन भाँति का, बस्तर पैरोंद।
घर से भैर[23] वीं जाण नी देन्दो।
भानू भौपेलो डाँडा मरोड़ी भैंसी चुगौन्दू,
होई गए जब श्यामली बगत,
वैन देखे, अमरा नी आई।
प्रेम की डोरीन बँध्यूँ छयो,
रौड़दो-दौड़दो, कालूनी कोट चली आये।
तब खोलीवालो[24] बोद, भितर जाण को हुकम नी च।
माई मरदान को वेला, इथैं[25] देखद उथैं[26],
देखे वैन राणी अमरावती, पूरब की मोरी[27]!
फेंके दुपटा तब अमरा न, भौंपेलो भीतर गाड़े।
औन्दी तबारी राणी की माता, भोजन लौंदी,
तब देखदी भानु भौंपला, तब बोदी-
हट छोरी, त्वैन कनो छोरा यों मराये,
भैर तेरी बरात आई छ,
यतनों मा येकी[28] सगून[29] नी पूगणो[30]।
तब बोदी[31] राणी अमरावती:
हे जिया[32], तौं[33] माचदू[34] क बोल, चली जावा।
भानु मेरो कलेजी को भेंडू[35], जिकुड़ी को साल[36]।
हे छोरी अमरा, त्वैन कनो छोरा मराये?
हे छोरा, अमरा का फरपंचू[37] कतै[38] न पड़,
भैर[39] वीं की बरात आई छ।
हाथ्यों का हलका[40] होला, घोड़ो का मलका[41]।
मैंन मरण जिऊण अमरा मेरी छ:
डाँडा मरुड़ी हमून फेरा फेरयालीन।
हे सासु, तुम छन माता का समान,
न छीना अपणी, नौनी को सुहाग।
हे सासु, इनी बुद्धि बतावा,
जाँ से तुमारी बेटी, बैरी न लिजै सको।
हे बेटा, सते छई तू जु राजू अंगस[42]
तू रागसाड़ी राज से, मांकाली घोड़ो जीती लौलो।
तब मैं अपणी बेटी अमरावती
त्वै दगड़े[43] बेवोलो।
आज मैं वीं, सैसर[44] भेजलो,
भोल[45] वापीस बुलै दिओलो।
हे सासु परसे, तब तेरी बेटी
दोघर्या[46] होई जाली।
जाणक मैं जौलू वख, पर बतौ तू
कथा[47] दिन जाणका छन कथा औण का।
बार बर्स जाण का छन, बार बर्स औण का।
चौबीस बरस मा, अमरा बुधर्या ह्वै जाली।
जु[48] त्वै[49] पर छेतरी[50] हंकार[51] त
चौबीस बरस तक का वचन लीले।
एक धज[52] तोड़ी मैं बामण[53] दिऊलो,
गुरु ज्ञानचन्द का सात अजुड़दो[54] करै द्यूलो।
चौबीस बर्स तक अमरा तेरी बाँद[55] छ।
वचन मांग्याल्या वैन, धरम दियाले,
सजाई वैन अपणी घोड़ी, होई गए सवार
मारी घोड़ी पर वैन, निगर कुलड़ा,
तब उड़ी घोड़ी पवन का समान,
उडी माल बाँज सी पतेलो[56],
नी समझी वैन, उतारी को बथौं[57]
नी समझी वैन, उकाली को धाम।
मेरो माल सास[58] नी ससदो,
थूक नी घूटदो, ढाँव नी रुकदो।
तब जाँद वो, तीसरा रोज-
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